पाथेर पांचाली-एक फिल्म जो धीमी है लेकिन जिंदगी के वास्तविक बदलते रफ्तार को दिखाती है।

पाथेर पांचाली-एक फिल्म जो धीमी है लेकिन जिंदगी के वास्तविक बदलते रफ्तार को दिखाती है।

कहानी पश्चिम बंगाल के गांव निश्चिंदीपुर से 1910 के आसपास शुरू होती है,अपु ट्राइलॉजी की पहली फिल्म पाथेर पांचाली है, जिसमें अपु और उसके ग़रीब,लेकिन सपनों को पूरा होते देखने के सपने के साथ गांव के संघर्ष भरे  स्थिति को दिखाया गया है। उस आंगन को छोड़ना जिस आंगन में आपने सपने संजोए हो। जहां आपकी कई पुश्ते रही हो, जहां कभी आप पुरोहित रहे हो। यह फिल्म शायद बदलते भारत की उन सारे परिवार की है जो शायद वक्त पर बदल ना पाए। एक ऐसी फिल्म जिसमें हर गांव में पुरखों की खंडहर पर रहे उस घर की कहानी है जहां कभी खुशियां लोटती थी और अभी सांप, एक बच्चे की अपनी बहन के मौत के बाद एक ही झटके में अपने बचपन को छोड़ जिम्मेदार बन अपने बाप का छाता और साल लपेटना, एक औरत की उम्मीद अपने घर में खुशी देखने के लिए अपने सपनों को मारते देखना या फिर हरिहर अपने खानदान का एक पुरोहित ,एक पिता जो अपने बच्चों को पढ़ाना चाहता था, एक पति जो शायद अपनी पत्नी के सारे सपने पूरा करना चाहता था या फिर एक कलाकार जो अपने कला से कुछ नया गढ़ना चाहता था, लेकिन जिंदगी उसे अपने वास्तविक बदलते रफ्तार को दिखाते रहती है और जिस वजह से उसे अपने कला, घर,अपनी बेटी ,याद सब को पीछे छोड़ उस बैलगाड़ी में बैठ सब देखने को मजबूर करती है।

ब्रिटिश मैगजीन साइट एंड साउंड (Sight and Sound) की ओर से जारी 100 बेहतरीन फिल्मों की ताजा सूची में जगह पाने वाली ‘पाथेर पंचाली’ एकमात्र भारतीय फिल्म है. हरिहर अपने आप को एक कवि या नाटककार के रूप में देखना चाहता है वो एक कृति बनाना चाहता है, जो उस समय के लोगों ने सोची भी ना हो लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण उसे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है, उसकी पत्नी सर्वजाया उसकी इसमें हर संभव मदद करती है, जैसे आमतौर पर एक घरेलू भारतीय नारी को करना पड़ता है, अपने सपनों को दबाकर। हरिहर अपने बेटे को पढ़ाना चाहता है, उसकी बेटी दुर्गा अपनी सहेलियों की तरह अपनी शादी के सपने संजोया करती है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण उसकी  तबीयत ख़राब होने की वजह से उसकी मृत्यु हो जाती है। जब हरिहर वापस आता है और उसे यह सब पता चलता है तो वो टूट जाता है और अपने घर को छोड़ बनारस  जाकर रहने का निर्णय लेता है।

इस फिल्म को बनाने के लिए सत्यजीत रे के पास पैसे नहीं थे उन्होंने अपनी LIC को गिरवी रख अपने पति के गहने जेवर गिरवी रखे फिर भी यह फिल्म दो बार रुकी पैसों की कमी की वजह से इस बीच सत्यजीत रे बहुत परेशान थे क्योंकि दुर्गा अपु का किरदार कर रहे बच्चों की आवाज में फर्क आ सकता था फिर एक दिन उन्होंने उसे समय के कोलकाता के मुख्यमंत्री को इस फिल्म की कुछ दृश्य दिखाएं और इस तरह बंगाल सरकार फिल्म की प्रोड्यूसर बन गई। इस तरह बनी "पाथेर पांचाली" इस फिल्म को दर्शकों और आलोचकों द्वारा भी इतना सराहा गया और साथ ही उसकी व्यवसायिक सफलता ने  सत्यजीत रे को इसका सीक्वल बनाने को मजबूर किया और इस तरह शुरुआत हुई इस कड़ी की दूसरी फिल्म "अपराजितो" की।

Related Posts

Comments

Leave a reply